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अतीत में, जब हाहो मुखौटा प्रदर्शन ग्रामीण जीवन का एक पारंपरिक हिस्सा था, तो इन प्रदर्शनों को देखने वाले लोगों का मानना था कि मुखौटे इतने पवित्र थे कि जब मुखौटा पहनने वाला जोकर हँसता था, तो मुखौटा स्वयं हँसता हुआ प्रतीत होता था, और यदि जोकर गुस्सा जताता, तो नकाब भी गुस्सा मे दिखता।